माँ चंद्रावली मथुरा

माँ चंद्रावली 



मथुरा| यू तो हम सभी जानते हैं कि मथुरा श्रीकृष्णा की जन्मभूमि रही है, मथुरा प्राचीन मंदिरो के लिए प्रशिद्ध है, मथुरा में श्रीकष्ण तथा राधा रानी के कई अनेको  मंदिर हैं जो की हजार वर्षो पुराने है, इन्ही मंदिरो को देखने के लिए श्रद्धालुओं का आवागमन लगा रहता है, देश विदेश से अनेक लोग यहां मथुरा वृंदावन में दर्शन के लिए आते हैं, मथुरा वृंदावन के हर एक प्राचीन मंदिर की अपनी विशेषता है, बाहर से जितने भी भक्तजन आते हैं वह ब्रज में ही रम जाते हैं, भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक राक्षसों का अंत किया यानी कि अनेक बुराइयों का अंत किया जिससे संसार में एक सकारात्मक सोच तथा विचार जा सके तथा प्रत्येक भक्तजन अपने जीवन का सुखद अनुभव प्राप्त कर सकें, मथुरा श्रीकृष्ण के जन्म की एक पावन भूमि है जो की यमुना नदी के किनारे बसा हुआ है, मथुरा के मूल निवासी ब्रजबासी कहलाते है क्योकि मथुरा ब्रज के अंतर्गत आता है, इसी पावन भूमि पर श्रीकृष्ण ने अनेको लीलाये की है, राधा-कृष्णा की भक्ति मे जो भक्तजन एक बार डूब जाता है वो भवसागर से पार हो जाता है, इसमें कोई भी संसय नहीं है की कृष्णा की भक्ति मे इतना रस है की जो एक बार रम गया तो वो रम गया और कृष्णा का हो जाता है, कृष्णा भक्ति मे इतनी मिठास और रस है जो कही नहीं है, मथुरा हमेशा भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता का प्रमुख केंद्र  रहा है, मथुरा के चारो दिशा मे 4 शिव मंदिर विरजवान है, जो की बहुत प्राचीन है, पूर्व मे  पिपलेश्वर का  शिव मंदिर है, दक्षिण में रंगेश्वर का  शिव मंदिर है, उत्तर मे  गलतेश्वर का तथा पच्छिम मे  भूतेश्वर  महादेव बाबा का मंदिर है, चारों दिशाओं में होने के कारण महादेव बाबा को मथुरा का कोतवाल कहते हैं, यमुना नदी के किनारे पर एक प्राचीन श्री द्वारकाधीश जी का मंदिर है जो कि विश्व विख्यात है, इस मंदिर को देखने के लिए  लोग देश -विदेश से आते है, लेकिन उत्खनन के द्वारा मथुरा का साक्ष्य कुषाण कालीन है। जो की मथुरा संग्रालय मे स्तिथ है,पुराणों के अनुसार शूरसेन देश की यहाँ राजधानी थी, अगर आप वृन्दावन  जायेंगे तो वहा केवल राधा नाम की  ही गूंज मिलेगी, मथुरा मे ही रमन रेती का मंदिर है, यहां पर श्रीकृष्णा ने माटी खायी थी और माटी मे खेले थे, अगर आप रमन रेती के बारे मे जानना चाहते है तो रमन रेती पर क्लिक करें, 


मथुरा की परिक्रमा......... भक्तजनों के द्वारा मथुरा में प्रत्येक एकादशी तथा अक्षय नवमी को परिक्रमा लगाई जाती है। देवठान एकादशी को तीनों वन की परिक्रमा लगाई जाती है जिसमें मथुरा, गर- गोविंद, तथा वृंदावन शामिल होते हैं, यह परिक्रमा  21 कोस की होती है, इस परिक्रमा को लगाने के लिए भारी मात्रा में भीड़ उमड़ती है, परिक्रमा लगाते भक्तजनों को बहुत अधिक आनंद प्राप्त होता है, परिक्रमा मार्ग में संगीत,  नाटक तथा भोजन की उचित व्यवस्था की जाती है, जगह-जगह पर निशुल्क मेडिकल की व्यवस्था भी की जाती है, मथुरा की परिक्रमा के द्वारा हम मथुरा के सभी मंदिरों का भ्रमण कर पाते हैं, मथुरा की परिक्रमा लगाने का एक अनोखा महत्व है, जो कि मन को शीतलता तथा आनंद प्राप्त कराता है, तथा यह परिक्रमा भजन तथा कीर्तन के साथ संपन्न की जाती है


माँ चन्द्रावली............... मां चंद्रावली का मंदिर मथुरा में दाऊजी रोड पर स्थित है, जो की बहुत प्राचीन मंदिर है, साल के दोनों नवरात्रों में चंद्रावली मंदिर पर भव्य आयोजन किया जाता है तथा नवरात्रों के दिनों में यहां भक्तजनों की भारी मात्रा में भीड़ उमड़ती है, प्रत्येक सोमवार को मां चंद्रावली के दर्शन करने के लिए बड़ी संख्या में भक्तजन आते हैं तथा मेले का आयोजन किया जाता है, 

माँ चंद्रावली की कथा........ मां चंद्रावली राधा रानी की अष्ट सखियों में से एक थी, जो कि श्रीकृष्ण को बहुत अधिक प्रेम करती थी, एक बार श्री कृष्णा राधा रानी के साथ यमुना के किनारे रास रचाने जा रहे थे तो उनके साथ देवी चंद्रावली भी चलने लगी, तब श्रीकृष्ण भगवान ने उनसे कहा कि आप यहीं विश्राम कीजिए हम कुछ समय बाद आपसे मुलाकात करेंगे, मां चंद्रावली अपने प्रियतम का आदेश मानकर वही विश्राम करने लगे, जब समय ज्यादा व्यतीत हो गया तो श्रीकृष्ण को याद आया की वहा हमारी सखी चंद्रावली हमारा इंतजार कर रही होंगी, जब राधा कृष्णा उनके पास पहुंचे तो वह बहुत नाराज हो गई और उन्होंने बात करने से इंकार कर दिया, और वे वही अपने प्यारे प्रीतम श्रीकृष्ण की याद में बैठी रही, तब श्रीकृष्णा ने चंद्रावली को वरदान दिया कि कलयुग में तुम्हारी पूजा इसी स्थान पर होगी तथा लोग देश- विदेश से यहां तुम्हारे दर्शन के लिए आएंगे, 

माँ चन्द्रावली के भक्त........ मां चंद्रावली के एक महान भक्त हुए जिनका नाम था मुरलीधर, जो की पूजा-अर्चना करने जमुना किनारे जाया करते थे, एक बार माता चंद्रावली ने भक्त मुरलीधर को स्वपन मे कहा की मे यहां हिंस के पेड़ो के नीचे विराजमान हु तुम मेरी प्राण प्रतिष्ठा करा कर खुले चबूतरे पर मुझे विराजमान करो, मैं अपने भक्तों का कल्याण करना चाहती हूं, भक्त ने जो सपने में देखा था वही पिंडी उसे साक्षात दिखाई देने लगी, तभी भक्त मुरलीधर ने मां चंद्रावली की पिंडी को वहीं चबूतरे पर विराजमान किया तथा पूजा-अर्चना की, इसमें कोई संशय नहीं है जो मां चंद्रावली के प्रत्येक सोमवार को दर्शन के लिए जाता है उसकी मां हर मुराद पूरी करती हैं, इस मंदिर की एक विशेष खासियत यह है कि मां चंद्रावली खुले चबूतरे पर विराजमान है, मां चंद्रावली खुले में रहना पसंद करती हैं, कई लोगों ने मां का भव्य मंदिर बनाने का प्रयत्न किया तथा चारो और दिवार भी बनवायी लेकिन दिवार स्वतः ही टूट जाती है, इसीलिए मां चंद्रावली वहां खुले चबूतरे पर ही विराजमान हैं


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