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Showing posts from April, 2020

दुर्भासा ऋषि

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              दुर्वासा   ऋषि मंदिर दुर्वासा ऋषि का जीवन परिचय तथा कहानियां........... पुराणों के अनुसार ऋषि दुर्वासा को  दुर्वासस भी कहते है, ऋषि दुर्वासा एक महान ऋषियोंं में से थे, ऋषि दुर्वासा अत्यधिक गुस्से वाले ऋषि थे| ऋषि दुर्वासा सतयुग,त्रेता युग,तथा द्वापर युग मैं भी थे, जिन्होंने हर युग में मानव केे कल्याण की शिक्षाएं तथा भक्ति का मार्ग प्रदर्शित किया जो कि सभी के लिए कल्याणकारी था| ऋषि दुर्वासा शिव जी का ही रूप है| दुर्वासा ऋषि शिव जी के बहुत बड़ेे भक्तों में से एक हैं, दुर्वासा ऋषि एक महान ऋषियों में से एक थे, दुर्वासा ऋषि के क्रोध को शांत करना आसान नहीं था| दुर्वासा ऋषि के क्रोध से मानव,दानव,देवता, असुर कोई भी नहीं बच पाया| दुर्वासा ऋषि के जन्म से जुडी अनेकों कथाएं हैं, दुर्वासा ऋषि के पिता अत्री तथा माता अनुसूईया थी| ऐसा कहा जाता है कि ब्रह्मानंद पुराण के अनुसार ब्रह्मा और शिव में झगड़ा हो गया था, जिससे शिव जी अत्यधिक गुस्से में आ जाते हैं, पार्वती जी के द्वारा शिव जी को समझाने पर शिव जी को अपनी गलती का एहसास होता है और वह अपने गुस्से को अनुसूईया माता के गर्भ में सं

Yamuna purified due carona virus

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Yamuna purified due carona virus           (क्रोना की बजह से यमुना हुई शुद्ध) यमुना  ---------- यमुना भारत की एक पवित्र नदी है | यमुना का उद्गम यमुनोत्री से हुआ है| यमुनोत्री उत्तरकाशी जिले मेंं  स्थित है| जो कि  समुंद्रर तल से लगभग 3235 मीटर ऊंचाई पर स्थित है| यह एक मंदिर है जो की देवी  यमुना जी के नाम से जाना जाता है | यमुनोत्री एक प्रमुख हिंदू तीर्थ हैै| जो कि ऋषिकेश से 210 किलोमीटर है तथा हरिद्वार से 255 किलोमीटर है| यमुनोत्री की महिमा का बखान पुराणों  मे भी  किया गया है | पुराणों में ऐसा कहा गया है की यहां सेे यमुना जी का  उदय हुआ है वहां स्नान करने तथा वहां का जल ग्रहण करने से मनुष्य पाप मुक्त हो  जाता है | पुराणों मे यमुना जी को सूर्य पुत्री कहा गया है | यमराज तथा शनि देव सूर्य केे पुत्र हैै| इस प्रकार यमुना, यमराज तथा शनिदेव की बहन है| यमदूतिया  नहान जो की  एक त्यौहार है, जो की  मथुरा मैंं काफी हर्षोल्लास से बनाया जाता है| ऐसा माना जाता है कि जो भाई बहन एक साथ हाथ पकड़ कर यमुना जी मे यमदुतिया के  पावन पर्व पर गोते लगाते हैं| वह सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं

रमणरेती(गोकुल)

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                        रमणरेती(गोकुल)मथुरा मेरे प्रिय मित्रों, आज मैं अपने कुछ अनुभव तथा एक महत्वपूर्ण जानकारी आपके साथ साझा करना चाहता हूं,  जो की  रमणरेती  से संबंधित है| जी हां मित्रों आपने सही समझा, हमारा आज का विषय  रमणरेती  है| जो कि मथुरा के गोकुुल में स्थित है| रमणरेती मथुरा और महावन के बीच पड़ता है| जो कि एक बहुत ही पवित्र स्थान है| रमणरेती में रेत ही रेेत है| ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण नेेेेेेे अपने बाल रूप में यहां अनेकों बाल लीलाएं की थी| रमणरेती की पावन भूमि पर भगवान श्री कृष्ण ने अपने ग्वाल वालों के साथ गाय चराई थी| तथा इसी पवित्र मिट्टी में रमणे थे| यानी कि पवित्र मिट्टी में लौट लगाई थी| यहां पर अनेक भक्तों की भीड़ उमड़ती देखी जा सकती  है| ऐसा माना जाता है कि इस पवित्र भूमि पर लौटने से अनेकों बीमारियां खत्म हो जाती हैं| अनेक स्कूलों के बच्चे भी यहां भ्रमण करने के लिए आते हैं| यहां पर भक्तजन मिट्टी से घर बनाते हैं| जिससे उनकी घर बनाने की मुरादें पूरी हो जाती हैं| इस पावन रेत पर कोई भी कंकड़ या पत्थर नहीं है जिससे इस रेत पर नंगे पैर चलना बहुत अच्छा तथा

प्रेम मंदिर(वृन्दावन)

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                      प्रेम मंदिर(वृन्दावन) दोस्तों आज में अपने कुछ अनुभव और प्रेम मंदिर की कुछ जानकारी जो की वृन्दावन मे स्थित है |आप के साथ साझा करना  चाहता हूं| प्रेम मंदिर का निर्माण जनवरी 2001 मे शुरु हुआ, और इसका उद्धघाटन समारोह 15  फरवरी से 17  फरवरी 2012 तक चला |17 फरवरी को मंदिर सभी भक्तों के लिए सार्वजनिक रूप से खोल दिया गया| जिससे भक्तजन आकर अपनी डोर परमात्मा से लगा सकें| इस मंदिर की देखरेख जगत गुरु कृपालु महाराज जो की एक इंटरनेशनल नॉनप्रॉफिट अध्यात्मिक चैरिटेबल ट्रस्ट है| इस मंदिर में राधा कृष्ण सीताराम और प्रभु कृपालुजी महाराज की मन मोहने वाली छवि दिखाई गई हैं जोकि भक्तजनों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं| इस मंदिर के निर्माण से वृंदावन में भी चांद चांद लग गए हैं| यह मंदिर इतना सुंदर और मन मोहने वाला बनाया गया है कि मेरे पास इस मंदिर को बयान करने के लिए शब्द कम है| इस मंदिर को देखने और दर्शन के लिए लोग-वाग  दूर-दूर से आते हैं| विदेशियों का सैलाब भी यहां बहुत रहता है जो कि कभी भी देखने को मिल सकता है| मंदिर में एक सत्संग भवन का निर्माण भी किया गया है| जिसमें एक समय में लगभग

Dwarkadish Temple

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            Dwarkadish Temple      Dwarkadish Temple   is a very ancient temple located in Mathura(uttar pradesh). Dwarkadish sits in the Dwarkadish temple with Radha Rani. Dwarkadish is an ancient famous Hindu temple.The structure of Dwarkadish Temple was built by Seth Gokuldas Pareek .(the treasurer of the Gwalior Estate) in 1814. Dwarkadish Temple is situated on the banks of river Yamuna . The temple(Dwarkadish ) complex is very beautiful and attractive. Thousands of pilgrims and devotees visit the temple to see God. Dwarkad ish Temple is situated on the banks of  Yam una ji  and  Vishram Ghat . On Janmashtami,Holi and Radha Ashtami, there is a lots of foreigners in the temple here. There is no doubt that every devotee in this temple here fulfills his wishes. The ruby ​​is adorned on the forehead of Shri Dwarka NathJi  And diamond is beautified on a chin. It is said that at one time In the dream, Shri Dwarka Nath God appeared to a devotee And said that my idol is buried in t

Mathura

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                                 Mathura(Holy place)                               राधे-कृष्णा Mathura ----- Mathura is the birth place of loard krishna. Mathura is situated on the banks of river Yamuna, about 150 kilometers away from Delhi. Mathura is famous for temple. The area of ​​Mathura is about 3709(square)km. According to the Puranas, Mathura is addressed by many names like madhupuri, sursen nagri, etc. Mathura is also found in the ancient epic Ramayana.Mathura is one of the pilgrimage sites of India.Tourists come from all over the world to see Mathura.Peda(sweet) of Mathura is famous all over the world.Mathura is known as Braj Bhumi because Sri Krishna was born here And the people here are known as Brijwasi.Mathura is one of the ancient city.Mathura still maintains its ancient civilization, culture and tradition.Mathura is a religious place for Hindus as well as a place of worship for Buddhists and Jains.In Mathura, Janmashtami And Radha Ashtami, in addition to